Chunav par kavita
चुनाव पर कविता
भारत में चुनाव होना हम भारतीयों के लिए एक त्यौहार जैसा है महीनो तक चलने वाला त्यौहार एक ऐसा त्यौहार जो हर धर्म हर संप्रदाय के लोग साथ मिलकर मनाते है लेकिन इसमें भी धर्म जाति संप्रदाय जैसे प्रमुख मुद्दे होते है लोगो को रोजगार स्वास्थ शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं की जरुरत नहीं बल्कि लोगो को तो उनका धर्म ही चुनावी मुद्दा लगता है ! जाने कब हम भारतीयों को समझ आएगा की सरकार धर्म की ठेकेदार नहीं वरन लोगो के द्वारा चुनी गई एक संस्था है जो लोगो को बेहतर जीवन देने के लिए प्रतिबद्द है ........
कुछ तेरी कुछ मेरी जिम्मेदारी निभाने का।
तुम बनो काका भतीजा मैं बन जाता हूं
चंद दिनों तक मतलबी रिश्ते को निभाता हूं,
चलो खेलते है खेला थोड़ा चुनावी चुनावी,
तुम मुझे ही चुनना इसमें क्या है खराबी।
एक भूली हुई सी पुरानी यारी निभाने का...
कि आ गया है मौसम रिश्तेदारी निभाने का...
मैं बोलूंगा धर्म तो तुम कट्टर बन जाना
जात पात पे सबको आपस में लड़वाना
साम्प्रदायिकता की आग तो ये वर्षों पुरानी है,
प्राचीन इस प्रथा को अब हमें ही बचानी है,
लोकतंत्र में अपनी अपनी समझदारी दिखाने का..
कि आ गया है मौसम रिश्तेदारी निभाने का..
@साहित्यगौरव
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