mandir aur masjid kavita
मंदिर और मस्जिद कविता
साम्प्रदायिकता और कट्टरवाद ये विकृत लोगो की निम्न मानसिकता का परिणाम है, आज लोगो को जहा अपने रोजगार की चिंता करनी चाहिए वहां लोग हिन्दू मुस्लिम, मंदिर और मस्जिद करने में लगे हुए हैI ये जानते हुए भी की भूखे पेट भजन न होए फिर भी खुशी खुशी धर्म की राजनीती का खिलौना बन ने को तैयार है, कोई इन मूर्खो को समझाए की सबका ईश्वर एक है.....
क्यूं करते हो मंदिर मस्जिद,
क्या ये काबा अलग है
क्या तेरे अल्लाह के जैसे,
मेरे भोले बाबा अलग है।
मानवता के रंगों से रंगे,
जो सबके परिधान है
क्या तेरे लिबास से बेहतर,मेरा पहनावा अलग है
इंसानियत से भी आगे क्या,
कोई बड़ा है मजहब यहां,
अपने अपने धर्म का इतना,
जो करते दिखावा अलग है।
क्या है मेरा ईश्वर,
और क्या तेरा पीर है,
भाई चारों के फूलों से बढ़कर ,तेरा चढ़ावा अलग है।
आग हिंसा और नफरत की
जो फैला रहे समाज में,
तरीके उसकी इबादत के और
इसके अलावा अलग है,
बरगलाने वाले नसमझों,
उन आकाओं से कह देना,
जरा तो समझो तो अब समझदारो कि,ये छलावा अलग है।
@साहित्य गौरव
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