Aukat par Kavita
Aukaat par kavita
कितनी अजीब दुनिया है मतलबी इंसान से भरी हुई, इंसान की औकात देखकर व्यव्हार करती है! लोगो को खुद की फिक्र नहीं बल्कि उनको तो दूसरों की जिंदगी में दखल देने की आदत सी हो गई है। यहां लोग अपनी खुशी से उतना खुश नही जितना दूसरों को मायूस देखकर खुश है।
ऐसी ही है मेरी औकात पर कविता ..
ऐसी ही है मेरी औकात पर कविता ..
मेरी हैसियत न देख,मेरी औकात पे ना जा।
मेरा मजहब न पूछ,मेरी जात पे ना जा।
मुक्कम्मल नही माना, हालात अभी मेरे,
मेरी मुफलिसी न देख,मेरे हालात पे ना जा,
वास्ता अपना रख, तू खुद अपने आप से,
किसी की सुनी हुई कोई बात पे ना जा,
दखलंदाजी गैरों का करना,बात नही अच्छी,
खुद की पहले देख मेरी हयात पे न जा।
उलझे से रहते है, मेरे रिश्ते आजकल
इनकी वजहों में छुपी किसी निकात पे न जा,
मुमकिन नही माना इनको बेहतर बनाए रखना,
है तंग कितनों से मेरे तालुकात पे ना जा,
हो जाती है अकसर मेरी लोगो से तकरारें,
ऐसी कितनी हो गई वारदात पे न जा।
जरूरी नहीं मुझकों इतना जलील करना
गलती से गुजरी हुई उस रात पे न जा,
माना थोड़ा मुश्किल है इन्हे संभाल पाना,
हो रही कितनी मुझे मुश्किलात पे न जा,
ये भी एक दौर है कल गुजर जाएगा,
शतरंज पे बिछी हुई तू बिसात पे न जा।
@साहित्य गौरव
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