इश्क हो तुम
मुझे मदहोश कर रहा है शबाब कोई ऐसा
महका गया जो अंग- अंग गुलाब कोई ऐसा।
जी भर के बख्शी है उन्हे,
खुदा ने हुस्न की दौलत,
उतर आया हो जमी पर आफताब कोई ऐसा।
देख रही है छुपकर मुझे,
उनकी नशीली आंखें,उफ!
छिपा रहा है चेहरा कमबख्त हिजाब कोई ऐसा।
इंतज़ार है मुझे कबसे
उन्हे आगोश में लेने का
कर रहा हो आशिक इश्क बेहिसाब कोई ऐसा।
@साहित्य गौरव
दानिस्ता अनजान बनने की,
ये आदत बड़ी अजीब है।
दिल ही दिल में रखने की,
ये आदत बड़ी अजीब है।
क्यों तड़पाते हो अपनों को,
जब खुद भी इतना तड़पते हो,
यूं छुप- छुप के इश्क करने की ,
ये आदत बड़ी अजीब है।
@साहित्य गौरव
Madhosh Mohabbat Kavita
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