मकान पर कविता
खुद का मकान हर एक इंसान का सपना होता है, मकान इंसान कितनी उमीदों से बनाता है, मकान में एक एक ईट इंसान की खून पसीने से कमाई हुई जिंदगी की सारी कमाई दौलत अपने सपनो का मकान बनाने में लगा देता है! क्या मकान सिर्फ पैसों से बनता है? हाँ अगर मकान सिर्फ पैसों से बने तो वो मकान ही कहलाता है लेकिन जब वो इंसानी रिश्तो से बनता है तो वो घर कहलाता है! आलिशान महलों को जैसे खंडहर बनने में देर नहीं लगती वैसे ही हर घर को मकान बनने में ज्यादा वक़्त नहीं लगती मेरी ये मकान पर कविता ऐसे ही हालात बयां करती है जहाँ रिश्तों से ज्यादा पैसों को महत्व दिया जाता है.
हर शख्स हो रहा है बईमान क्यूं यहां,
फितरत बदल रहा है इंसान क्यूं यहां।
बच गए जो कुछ कही पर घर पुराने से,
अब ईटो के ही रह गए ये मकान क्यूं यहां।
जा चुकी है आज रंगत रंगीन इन दीवारों की,
खंडहर बन चुके है आलीशान क्यूं यहां।
रिश्तों का घरौंदा जो सजाया था किसी ने,
कैसे टूटने लगा है सख्त समान क्यूं यहां।
ढूंढ रहे थे कल तक खुशियां पैसों में कही,
रह गए कितने अधूरे अरमान क्यूं यहां।
बेच कर जमीर अपना जो महल बनाया था,
बह गए बारिश में उसके निशान क्यूं यहां।
@साहित्य गौरव
हमें उम्मीद है कि आपको हिंदी कविताओं के बारे में हमारा लेख पसंद आया होगा। इस ज्ञान के साथ, हम जानते
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